Homeदेशकौन हैं जस्टिस प्रसन्ना वाराले, जिनके शपथ लेते ही सुप्रीम कोर्ट में...

कौन हैं जस्टिस प्रसन्ना वाराले, जिनके शपथ लेते ही सुप्रीम कोर्ट में बन जाएगा रिकॉर्ड…

सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की रेकमंडेशन के बाद केंद्रीय कानून मंत्री ने बुधवार को जस्टिस प्रसन्ना वाराले की नियुक्ति को हरी झंडी दे दी।

केंद्रीय कानून और न्याय राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने एक्स पर एक पोस्ट में इसकी जानकारी दी।

जस्टिस प्रसन्ना कर्नाटक हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस रहे हैं। उनकी नियुक्ति के साथ दिसंबर 2023 में जस्टिस संजय किशन कौल के रिटायरमेंट से खाली हुई जगह भर जाएगी।

इसके बाद ऐसा पहली बार होगा, जब सुप्रीम कोर्ट में एक साथ तीन दलित जज होंगे। आइए जानते हैं आखिर कौन हैं जस्टिस प्रसन्ना वाराले, जिनके शपथ लेते ही सुप्रीम कोर्ट में रिकॉर्ड बन जाएगा।

1962 में जन्म
जस्टिस वाराले का जन्म साल 1962 में कर्नाटक के निपानी में हुआ था। यह जगह महाराष्ट्र की सीमा पर है। उन्होंने डॉक्टर बाबासाहेब अंबेडकर मराठा यूनिवर्सिटी से आर्ट्स और लॉ की पढ़ाई की थी।

इसके बाद 1985 में वह वकालत में एनरोल हुए। अपने कॅरियर की शुरुआत में उन्होंने एडवोकेट एसएन लोया का चैंबर ज्वॉइन किया।

यहां पर उन्होंने सिविल और क्रिमिनल लॉ की प्रैक्टिस शुरू की। वह 1990 से 1992 के बीच औरंगाबाद के अंबेडकर लॉ कॉलेज में लेक्चरर भी रहे थे।

उन्होंने औरंगाबाद में बॉम्बे हाईकोर्ट बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त सरकारी वकील के रूप में काम किया।  उन्हें 18 जुलाई, 2008 को बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था।

कर्नाटक हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस
जस्टिस प्रसन्ना बी वाराले अक्टूबर 2022 से कर्नाटक हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस हैं। यहां पर उन्हें जनहित के कई मामलों में स्वत: संज्ञान के लिए जाना जाता है। कर्नाटक हाई कोर्ट के वकील उन्हें जमीन से जुड़ा हुआ और आम आदमी के हित में काम करने वाला बताते हैं।

कर्नाटक हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्ति से पहले जस्टिस प्रसन्ना ने बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के रूप में 14 साल तक अपनी सेवाएं दी हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में, उनकी अध्यक्षता वाली पीठों ने जनहित में स्वत: संज्ञान लेते हुए मामले शुरू किए।

इसमें अंबेडकर के लेखन और भाषणों को प्रकाशित करने के लिए एक रुकी हुई परियोजना पर जनहित याचिका भी शामिल थी।

जस्टिस वराले की अध्यक्षता वाली पीठ ने जनवरी 2022 में एक स्वत: संज्ञान जनहित याचिका भी शुरू की, जिसमें जोखिम भरी नाव की सवारी के बारे में एक समाचार रिपोर्ट का संज्ञान लिया गया, जिसे महाराष्ट्र के सतारा जिले के खिरखांडी गांव की लड़कियों को अपने स्कूल तक पहुंचने के लिए रोजाना करना पड़ता है।

बेंच ने सरकार से कहा कि वह राज्य में इसी तरह की दुर्दशा का सामना कर रहे स्कूली बच्चों को मदद मुहैया कराए।

यादें की थीं शेयर
बॉम्बे बार एसोसिएशन में 12 अक्टूबर 2022 को अपने फेयरवेल में जस्टिस वाराले ने कहा था कि मैं खुशनसीब हूं कि मेरा जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जिसके ऊपर बीआर अंबेडकर का आशीर्वाद है। उन्होंने कहा कि उनके दादा को अंबेडकर औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर) ले गए थे।

उन्हें उस कॉलेज के अधीक्षक के रूप में नियुक्त किया गया था जिसे अंबेडकर ने वहां शुरू किया था। जस्टिस प्रसन्ना ने इसी दौरान कहा था कि अगर अंबेडकर न होते तो दूरस्थ इलाके में रहने वाले उनके दादाजी कभी औरंगाबाद न पहुंच पाते।

अगर ऐसा नहीं होता तो फिर यह भी संभव नहीं होता कि उनकी अगली पीढ़ी का कोई आदमी कभी कानूनी पेशे में आता और हाई कोर्ट के जज की कुर्सी पर बैठता।

जस्टिस वाराले ने यह भी बताया था कि अंबेडकर ने उनके पिता भालचंद्र वाराले को कानूनी पेशे में आने की सलाह दी थी। भालचंद्र वाराले कई कोर्ट में न्यायिक अधिकारी बने और बाद में बॉम्बे हाई कोर्ट में रजिस्ट्रार बने थे। 

RELATED ARTICLES

हमसे जुड़ें

0FansLike
0FollowersFollow
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe