भारत की धमक दुनिया में लगातार बढ़ती जा रही है।
राजनीति रूप से बड़े और ताकतवर देश भी भारत की बात को गंभीरता से सुनते हैं। इसी का परिणाम है कि भारत ने चागोस द्वीप समूह का मालिकाना हक यूनाइटेड किंगडम से मॉरीशस को ट्रांसफर कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
न्यूज एजेंसी एएनआई के सूत्रों के अनुसार, भारत ने वार्ता के दौरान दृढ़तापूर्वक और अडिग रूप से उपनिवेशवाद के अंतिम अवशेषों को समाप्त करने की आवश्यकता की वकालत की थी।
यूके और मॉरीशस द्वारा जारी संयुक्त बयान में भी इस मामले में भारत की भागीदारी की बात को स्वीकार किया गया है।
बयान में कहा गया, “आज के राजनीतिक समझौते पर पहुंचने में हमें अपने करीबी सहयोगियों संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत का पूर्ण समर्थन और सहायता मिली है।”
आपको बता दें कि यूके के द्वारा मॉरीशस को दूरस्थ द्वीपों की संप्रभुता सौंपने का फैसला करने से दोनों देशों के बीच दशकों से चली आ रही अक्सर विवादास्पद वार्ता समाप्त हो गई।
सूत्रों ने कहा, “भारत ने इसमें एक शांत लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारत मॉरीशस के सैद्धांतिक रुख का दृढ़ता से समर्थन किया। उपनिवेशवाद के अंतिम अवशेषों को मिटाने की आवश्यकता पर इसके रुख का समर्थन किया। भारत ने लगातार दोनों देशों को खुले दिमाग से बातचीत करने और पारस्परिक रूप से लाभकारी परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।”
ऐसा माना जाता है कि अंतिम परिणाम सभी पक्षों के लिए जीत है और यह हिंद महासागर क्षेत्र में दीर्घकालिक सुरक्षा को मजबूत करेगा। घोषणा के तुरंत बाद भारत ने यूनाइटेड किंगडम और मॉरीशस के बीच ऐतिहासिक समझौते का स्वागत किया और कहा कि लंबे समय से चले आ रहे चागोस विवाद का समाधान एक स्वागत योग्य कदम है।
विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस वक्तव्य में भारत सरकार ने कहा, “हम डिएगो गार्सिया सहित चागोस द्वीपसमूह पर मॉरीशस की संप्रभुता की वापसी पर यूनाइटेड किंगडम और मॉरीशस के बीच हुए समझौते का स्वागत करते हैं। यह महत्वपूर्ण समझ मॉरीशस के विउपनिवेशीकरण को पूरा करती है। दो साल की बातचीत के बाद अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुपालन में लंबे समय से चले आ रहे चागोस विवाद का समाधान एक स्वागत योग्य कदम है।”
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